न रही कोई ख़्वाहिश


प्रकाशित मिति : फाल्गुन १, २०७६ बिहीबार

-बसुधा

कैसी हो उम्मीद भला
किसका होगा आसरा
और किसका हो एतबार

ईस भैलेन्टाईन्स डे के लिए
बेहद मदमाता हुआ सुर्ख़ सा
वही सुन्दर लाल ? गुलाब
जो कल ज़ोरशोर से बिकेंगी
मुंहमांगे दाम पे गए रात तक
मगर मुझको ख़्वाहिश हीं नहीं
बिल्कूलभी कोई तमन्ना न रहीं

ईसकी यही वज़ह है के शायद
आजकल ईन लाल गुलाबों मे
कोई ख़ुशबू बसा है नहीं जैसे
जो दिलो ?को कहीं छूजाए
प्रेमियों को मदहोश हीं करदे
ऊन्के होश-ओ-हवाश ऊड़ादे
ऊन्हें किसी और जहाँ ले जाए
दिलबरों को भी दिवाना बनादे

ज़ाहीर है आज वो बात न रही
बाज़ारमें ईन दिनों भैलेन्टाईन्स पे
बड़ा क्रेज़सा है ईन गुलाबों का
मगर लगता है ईन लाल गुलाबोंमे
वो ख़ासियत और कशिश़ न रहीं

ईन्कि रंगत हाथोंसे बनाई गई जैसे
किसी चटू चमत्कारी के हाथों से
अब कहाँ रही वो सारी प्यारी बातें
जिसे हम सब प्यार कहा करते थे
आज इसे हीं ब्यापार कहा करते हैं
और रही कहाँ वो गुलाबों की ख़ुश्बू
जो सभी दिलोंको दिवाना कर देती
इस वज़ह मुझको तो नहीं ख़्वाहिश
? प्रेम दिवसमें लाल?गुलाबकी…

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